चंदौली (यूपी)
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शहाबगंज चंदौली में प्रसव के दौरान महिला की मौत के मामले में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने डीएम चंदौली एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारी को अंतिम रिमाइंडर जारी कर सख्त आदेश देते हुए दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। पूरा मामला शहाबगंज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का है। जहा प्रसव के दौरान संजू देवी ग्राम लाटांव की मौत हो गई थी। पीड़िता के पति ने आरोप लगाया था कि पीड़िता की मौत डाक्टर संदीप गौतम एवं स्टॉप नर्स की लापरवाही के कारण हुई है। परिजनों ने डाक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाकर सड़क भी जाम कर दिया था।
मामला संज्ञान में आने के बाद मानवाधिकार सी डब्लू ए के चेयरमैन योगेंद्र कुमार सिंह (योगी) ने मामले की शिकायत आयोग में भेजकर दोषियों के ऊपर कठोरतम कार्यवाही करने एवं मृतिका के परिवार को उचित मुआवजा दिलाने का अनुरोध किया था।
आयोग ने मामले का संज्ञान लेते हुए दिनांक 07/11/2024 की कार्यवाही के माध्यम से प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश सरकार से आरोपों की जांच करने एवं आवश्यक कार्यवाही सुनिश्चित करने और आयोग को कार्यवाही रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।
सीजीएम कोर्ट के दिनांक 14/10/2024 के आदेश में विद्वान न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया था कि प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश को ध्यान में रखते हुए कथित चिकित्सा लापरवाही के वर्तमान मामले में प्रारंभिक जांच अनिवार्य है। इस लिए सीएमओ चंदौली को मामले में गहन जांच करने और बिना देरी किए दिनांक 22/10/2024 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है।
इस प्रकार यह स्पष्ट था कि न्यायालय ने सीएमओ चंदौली को प्रारंभिक जांच के लिए निर्देशित किया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि कथित चिकित्सा लापरवाही का कोई कार्य या घटना रिकॉर्ड में आती है या नहीं, इससे पहले कि धारा 173 (4) बीएनएसएस के तहत आगे के निर्देश जारी किए जाएं। स्थिति आयोग को प्राधिकरण से जांच रिपोर्ट मांगने से नहीं रोकती है।
आयोग के निर्देशों के बावजूद अधिकारियों ने मामले में अपेक्षित रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की थी। आयोग ने अधिकारियों के गैर जिम्मेदाराना रवैए पर सख्त कदम उठाते हुए डीएम चंदौली और मुख्य चिकित्सा अधिकारी चंदौली को अंतिम अनुस्मारक जारी करने का निर्देश जारी किया है,और दो सप्ताह के भीतर रिपोर प्रसूत करने का निर्देश दिया है। आयोग ने अपने निर्देश में कहा है कि ऐसा न करने पर आयोग मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 13 के तहत अपनी बाध्यकारी शक्तियों का उपयोग करने के लिए बाध्य होगा।