राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने चीफ सेक्रेटरी यूपी को मृतक के परिवार को पांच लाख मुआवजा देने का दिया निर्देश



गाजीपुर (यूपी)

नगसर हाल्ट थाना स्थित उजराडीह कंपोजिट विद्यालय में हैंड पंप पर पानी पीते समय एक पांच वर्षीय बच्ची की मौत के मामले में मानवाधिकार सी डब्लू ए की शिकायत पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने मृतक के परिजन को पांच लाख रुपए का मुआवजा देने का सख्त निर्देश दिया है।

 मामला उजाराडीह कंपोजिट विद्यालय का है । विद्यालय में लगे हैंड पंप पर नाबालिक पानी पीने के लिए गई थी कि करंट प्रवाहित तार की चपेट में आ जाने से अचेत होकर गिर गई जिसे आनन फानन में हॉस्पिटल ले जाया गया जहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया।

मामले की गंभीरता को देखते हुए मानवाधिकार सी डब्लू ए के चेयरमैन योगेंद्र कुमार सिंह (योगी) ने आयोग में शिकायत भेजकर मृतक के परिजन को उचित मुआवजा एवं दोषियों के खिलाफ कठोरतम कार्यवाही करने का आग्रह किया था।

आयोग ने मामले को संज्ञान में लेते हुए जांच का निर्देश दिया।  जांच में स्पष्ट हुआ कि पीड़ित की मौत शिक्षकों एवं खंड शिक्षा अधिकारी की लापरवाही से हुई थी। परिणाम स्वरूप उन लोगों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की गई है। पांच वर्ष की नाबालिक लड़की रागिनी पुत्री भोजा राजभर आंगन बाड़ी में अन्य बच्चों के साथ आई थी। जिसकी हैंड पंप पर पानी पीते वक्त करंट की चपेट में आने से मौत हो गई। जांच में  प्रधानाध्यापक शेषनाथ सिंह ,  सहायक अध्यापक विनोद सिंह शैलेन्द्र राम तथा सुधीर कुमार की लापरवाही पाई गई तथा उन्हें निलंबित कर दिया गया। साथ ही शिक्षा मित्र शिवशंकर राय, श्रीमती शीला कुशवाहा की लापरवाही पाई गई तथा उनका पारिश्रमिक अगले आदेश तक जब्त कर लिया गया। जांच में खंड शिक्षा अधिकारी रेवतीपुर की लापरवाही पाई गई जो स्कूल का उचित निरीक्षण करने में विफल रहे। उपरोक्त सभी दोषी लोक सेवकों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की संस्तुति शासन से की गई है।

 आयोग ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि यदि शिक्षा विभाग के लोक सेवक अधिक सजग और सतर्क होते तो नाबालिक बच्ची की असामयिक विद्युत आघात से मृत्यु को टाला जा सकता था। विद्यालय स्टॉप और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की लापरवाही जो कि डीसी/डीएम, गाजीपुर की रिपोर्ट के माध्यम से पहले स्थापित हो चुकी है। इन शिक्षकों एवं अधिकारियों की लापरवाही के कारण नाबालिक लड़की के जीवन के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। आयोग ने चीफ सेक्रेटरी उत्तर प्रदेश सरकार को मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 18 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा कि क्यों न नाबालिक मृतक रागिनी पुत्री भोजा राजभर को नगद राशि 5,00,000/ (केवल पांच लाख) के मौद्रिक मुआवजे की संस्तुति क्यों नहीं करी चाहिए। आयोग ने छह सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

आयोग ने कहा कि शिक्षा के अधिकार के लिए आवश्यक हैं कि बच्चे एक गुणवत्तापूर्ण स्कूल में पढ़े, और एक गुणवत्तापूर्ण स्कूल निश्चित रूप से बच्चे की सुरक्षा के लिए कोई खतरा नहीं होना चाहिए। माता पिता को अपने बच्चों को खतरनाक स्कूलों में भेजने के लिएं मजबूर नहीं किया जाना चाहिए, नहीं बच्चों को खराब इमारतों में अनिवार्य शिक्षा का सामना करना चाहिए। कोई भी परिवार अपने बच्चे को चाहे जहां भी पढ़ना चाहे, राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे को उनके मौलिक अधिकार और नागरिक कर्तव्य का प्रयोग करने में कोई नुकसान न हो। 

आयोग ने कहा कि बच्चे के लिए सुरक्षित शिक्षा सुनिश्चित करना तथा विद्यालयों द्वारा सुरक्षित सुविधाएं प्रदान करना भी राज्य की जिम्मेदारी है। प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है कि वह सुरक्षा के भय से मुक्त होकर शिक्षा प्राप्त करे। बच्चों को असुरक्षित भवन में शिक्षा प्राप्त करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

आयोग द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी करने के बावजूद भी कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई। सरकार के गैर जिम्मेदाराना रवैए पर आयोग ने सख्त निर्देश देते हुए चीफ सेक्रेटरी को छह सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अनुस्मारक जारी किया। आयोग ने सख्त लहज़े में कहा कि यदि रिपोर्ट छह सप्ताह के भीतर प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो आयोग मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 13 के तहत अपनी बाध्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए बाध्य होगी।
 आयोग ने 08/06/2025 तक पूर्ण रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।