कैमूर (बिहार) जनपद के मुंडेश्वरी धाम में हजारों की संख्या में भक्त आस्था की डुबकी लगा रहे है। एस आई भांजी तिवारी (बबलू ) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने बताया कि प्रतिदिन पचास हजार से ज्यादा दर्शनार्थी मां के दर्शन के लिए पहुंच रहे है। उन्होंने बताया कि मां मुंडेश्वरी मंदिर विश्व की सबसे प्राचीनम मंदिरो में से एक है। जिला प्रशासन दर्शनार्थियों के सुविधा को ध्यान में रखते हुए पूरी तौर पर मुस्तैद है। मां मुंडेश्वरी धाम में आश्चर्यजनक बात यह है कि यहाँ बिना रक्त बहाए ही बकरे की बलि चढ़ जाती है। इसके साथ यह भी है कि आप माता की मूर्ति पर अधिक देर तक अपनी दृष्टि टिकाए नही रह सकते है।मां
मां मुंडेश्वरी
इसी मंदिर परिसर में एक पंचमुखी शिव लिंग भी है जो दिन के तीन पहर अपना रंग बदल लेता है। दरअसल बिहार में एक से बढ़कर एक धार्मिक स्थल है जो अपने अंदर ऐसे कई रहस्य छुपाए हुए है जिसकी सच्चाई समय- समय पर दुनिया के सामने आती रहती है तो दुनिया हैरान हो जाती है। इन्ही में से कुछ ऐसे भी है धार्मिक स्थल जिनके रहस्य को कोई आज तक समझ नही पाया।
इन्ही में से एक है पंवरा पहाड़ी के शिखर पर मौजूद मुंडेश्वरी माता की विश्व की सबसे प्राचीनतम मंदिर। इस मंदिर को शक्ति पीठ भी कहते है। जिनके बारे में कई बाते प्रचलित है जो इस मंदिर के विशेष धार्मिक महत्व को दर्शाता है। यहा कई ऐसे रहस्य भी है जिनके बारे में आज तक विज्ञान भी समझ नही पाया। यहां बिना रक्त बहाए बकरे की बलि दी जाती है जैसे पता चलता है कि माता सभी जीवों पर दया रखती है।
पहाड़ी पर माता के मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 608 फिट ऊंचे पहाड़ की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यहां प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 389 ईस्वी के आसपास का है जो इसके प्राचीनतम होने का सबूत है। पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ है जिनको देखकर लगता है कि उनपर श्री यंत्र सिद्ध यंत्र मंत्र उत्कीर्ण है। जैसे है भक्त मंदिर के मुख्य द्वार पर ही पहुंचते है वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय होने लगता है। सीढ़ियों के सहारे मंदिर के दरवाजे पर पहुंचने के साथ ही पवरा पहाड़ी के शिखर पर स्थित मां मुंडेश्वरी भवानी मंदिर की नक्काशी अपने आप में मंदिर की अलग पहचान दिलाती है। 
एस आई भांजी तिवारी (बबलू) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने बताया कि मंदिर बेहद प्राचीन है साथ ही बेहद धार्मिक भी है। कहते है कि इस मंदिर में माता के स्थापित होने की कहानी भी बढ़ी रोचक है। मान्यता के अनुसार इस इलाके में चंड और मुंड नाम के असुर रहते थे जो लोगो को प्रताड़ित करते थे। जिनकी पुकार सुन माता पृथ्वी पर आई थी, और इनका बध करने के लिए जब यहां पहुंची तो सबसे पहले चंड का वध किया उसके निधन के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया था, लेकिन माता इस पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध कर दिया था। इसी के बाद ये जग माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
वैसे तो पूरे साल भक्तो का ताता लगा रहता है लिकिन नौरात्रि में लाखो की भीड़ माता के दरबार में मत्था टेकने पहुंचती है। मंदिर के अंदर प्रवेश करने के बाद मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुंडेश्वरी की पत्थर से भव्य व प्राचीनतम मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है, जहा मां वाराही रूप में विराजमान है। माता की मूर्ति ऐसी भव्य है जिसपर नजर अधिक देर तक टिक नहीं सकती है।
यहां माता के चरण में बलि भी चढ़ जाती है लेकिन खून का एक कतरा बाहर नहीं निकलता है। पूजा होने के बाद बलि देने के लिए बकरे को मंदिर के भीतर माता के समक्ष लाया जाता है, बकरे को माता के सामने लाने के बाद मंदिर के पुजारी ने बकरे के चारो पैरो को मजबूती से पकड़ लेता है और माता के चरणों में स्पर्श करने के बाद मंत्र का उच्चारण करता है, बकरे को माता के चरण के सामने रख देता है और फिर बकरे पर पूजा किए हुए चावल छिड़कता है जैसे ही वो चावल बकरे पर पड़ता है बकरा अचेत हो जाता है। कुछ देर तक बकरा अचेत रहता है जब पुजारी कुछ मंत्र पढ़ते है और माता के चरण में पड़े फूल को फिर से बकरे पर फेकते है तो बकरा ऐसे जागता है मानो वह नीद से जागा हो लेकिन उसकी जान नही जाती है।
भांजी तिवारी (बबलू) यस आई भारतीय पूरा तत्व सर्वेक्षण ने बताया कि इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परंपरा है। इस समय नौरात्रि में लाखो भक्तो का हुजूम उमड़ पड़ा है। जनपद की पुलिस सुरक्षा में कोई चूक न हो को लेकर पूरी तरह गंभीर है। पुलिस के जवान हमेशा सुरक्षा में मुस्तैद रहते है। वही जिला प्रशासन भी पूरी तरह से सुरक्षा की कमान संभालें हुए है।